अनादि काल से ही भारतवर्ष में गुरु-शिष्य की परंपरा रही है। गुरु-शिष्य का रिश्ता एक पवित्र रिश्ता माना जाता है।

अनादि काल से ही भारतवर्ष में गुरु-शिष्य  की परंपरा रही है। गुरु-शिष्य का रिश्ता एक पवित्र रिश्ता माना जाता है।

प्राचीन काल में सभी बच्चे चाहे वह राजघराने के हो या साधारण परिवार के ऋषि-मुनियों के आश्रम में शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाया करते थे और सभी को बराबरी का अधिकार दिया जाता था। लेकिन आज यह रिश्ता,यह परंपरा काफी हद तक बदल चुकी है। आश्रमों  की जगह बड़े-बड़े फाइव स्टार स्कूलो ने ले ली है और शिक्षा का मंदिर कहे जाने वाले ये स्कूल आज शिक्षा के नाम पर बिजनेस कर रहे हैं और पैसा छापने की मशीन बन चुके हैं। आज देश की शिक्षा व्यवस्था किस ओर जा रही है बच्चो का भविष्य किस ओर जा रहा है इस बात से किसी का कोई लेना देना नही है। आज देश की शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से व्यवसाय में परिवर्तित कर दिया गया है। मुझे इस बात का भी बहुत दुख होता है कि अब हमारी शिक्षा व्यवस्था पर भी पाश्चात्य सभ्यता का कब्जा होता जा रहा है। बच्चे को हमारी मातृ भाषा हिन्दी चाहे पढनी आये न आये लेकिन इंग्लिश जरूर आनी चाहिए। एक बार मैं अपने मित्र के यहाँ गया तो उन्होंने मेरा परिचय अपने बेटे से करवाया जोकि कक्षा 10  में पढ़ रहा है। तो मैं यह देखकर हैरान रह गया कि वह बच्चा अंग्रेजी भाषा में मुझसे बात कर रहा था लेकिन जब मैंने उससे हिंदी के न्यूज़पेपर में एक आर्टिकल पढ़ने के लिए कहा तो वह बच्चा अटक-अटक कर पढ़ रहा था। और इस बात पर उसके माता पिता गर्व के साथ कह रहे थे कि हमारे बच्चे को हिन्दी थोडी कम आती है। अब आप खुद अन्दाजा लगा सकते हो कि देश और देश की युवा पीढी किस ओर जा रही है। जो देश,समाज या परिवार अपनी जड़ों से,सभ्यता और अपनी संस्कृति से दुर हो जाता है उनका अस्तित्व लगभग खत्म हो जाता है।
जो व्यक्ति हमें अंधकार से प्रकाश की तरफ, अज्ञान से ज्ञान की तरफ ले जाता है वही सही मायनों में हमारा गुरू है। ऐसा प्रत्येक व्यक्ति हमारा गुरु और शुभचिंतक है। हमें हमेशा अपने गुरुओं के प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।

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