परवरिश

आजकल के बच्चों की जिस तरीके से परवरिश हो रही है वह काफी चिंताजनक है। जहां पहले एक – दो साल का रोता हुआ बच्चा मां की गोद में जाते ही चुप हो जाता था वही आज उसके हाथ में मोबाइल आने पर ही चुप होता है। पहले बच्चे दादा-दादी, नाना-नानी और मां की लोरियां और कहानियां सुनकर सो जाया करते थे लेकिन आज वे मोबाइल, टीवी, टेबलेट में कार्टून और Poem देख कर ही सोते हैं।


 पहले बच्चे को उठते ही दूध की आवश्यकता होती थी और जब उसकी मां दूध से भरी हुई बोतल उसके होठों से लगा देती थी तो बच्चा दूध पीते-पीते ही फिर से सो जाया करता था लेकिन आज बच्चे को उठते ही उसके मां-बाप उसे चुप कराने के लिए उसके हाथों में मोबाइल या टैबलेट थमा देते हैं। बच्चे को भी अब दूध की आवश्यकता नहीं है। पहले जॉइंट फैमिली में बच्चे अपनी जरूरत की छोटी-छोटी चीजों के लिए दादा-दादी, नाना-नानी पर निर्भर रहते थे लेकिन अब एकल परिवारों में भी बच्चों को किसी के सहारे की आवश्यकता ही नहीं रह गई है। अब बच्चों का परिवेश इतना बदल गया है कि दादा-दादी बच्चे को प्यार से दिन भर पुकारते रहते हैं लेकिन बच्चा उनके पास जाने को भी तैयार नहीं है क्योंकि उन्हें उनके पेरेंट्स ने खेलने के लिए, उनका मन बहलाने के लिए मोबाइल, टीवी, टेबलेट, कंप्यूटर के रूप में दादा-दादी से भी ज्यादा मनोरंजक खिलौना एवं साधन उपलब्ध करा दिए हैं। समय बहुत तेजी से बदल रहा है मुझे अभी भी याद है जब बचपन में लगभग 20-22 साल पहले मैं अपने दोस्त के घर से एक वीडियो गेम चुपके से उठा लाया था जिसकी कीमत उस समय ₹100 – ₹50 रूपए रही होगी। उस वीडियो गेम में गिनती के 10 गेम रहे होंगे लेकिन उन्हें हम बड़े चाव से खेलते थे। अत्यधिक मनोरंजक लगते थे। आज बच्चो के पास लाखों रुपए के गैजेट्स 1-1 लाख रूपए के मोबाइल फोन, लैपटॉप, आईपैड, कंप्यूटर मनोरंजन करने के लिए आसानी से उपलब्ध है जिनमें हजारों में गेम है लेकिन…..

आज ना पेरेंट्स के पास बच्चों के लिए समय है और ना ही बच्चों को उनकी आवश्यकता ही महसूस होती है। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है और चिंताजनक बात भी। यह बात सच है कि मनुष्य एक स्वार्थी प्राणी है और उसका स्वार्थ पूरा होते ही वह आगे बढ़ जाता है। वैसे ही जैसे आजकल के बच्चे क्योंकि अब उन्हें टाइमपास के लिए, अपना मनोरंजन करने के लिए दादा-दादी, नाना-नानी की जरूरत ही नहीं रह गई है बल्कि वह तो उनकी मौजूदगी से अपने आप को असहज महसूस करते हैं। वह चाहते हैं कि उन्हें कोई डिस्टर्ब ना करें। अब उनके पास एक से बढ़कर एक गैजेट्स हैं जो कि उनके मन मुताबिक उनका मनोरंजन करते हैं और बदले में कुछ काम भी नहीं बताते हैं। तो उनके लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। लेकिन यह बात सभ्य समाज के लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकती है क्योंकि ऐसे बच्चों की समाज और परिवार के प्रति संवेदनशीलता लगभग खत्म हो जाती हैं। मैं यहां पर इन बातों को इतने विश्वास के साथ इसलिए लिख पा रहा हूं क्योंकि मैंने ऐसे बच्चों पर, ऐसी पीढ़ी पर जिनकी परवरिश आधुनिकता की चकाचौंध में हुई है उनके ऊपर गहन अध्ययन किया है। आज समय है पेरेंट्स को जागरूक होने का। मैं यहां पर पेरेंट्स से यहीं गुजारिश करूंगा कि अगर आप बच्चों को कुछ देना ही चाहते हैं तो उन्हें अपना समय दीजिए न कि गैजेट्स। क्योंकि बच्चों के विकास के लिए अगर कोई सबसे अधिक बहुमूल्य चीज साबित हो सकती है तो वह है आपका समय ना कि लाखों रुपए खर्च करके वह गैजेट्स जिन्हें आप उनको दे देते हैं। यह गैजेट्स बच्चों के सामाजिक और मानसिक विकास में बाधक साबित हो सकते हैं और हो भी रहे है। बच्चों से बात करें, उनकी भावनाओं को समझें न कि उन्हें चुप कराने के लिए गैजेट्स थमा दे ताकि वे कभी अपनी भावनाओं को व्यक्त ही ना कर पाएं।

एक समय था जब बच्चों के पास खेलने के लिए गिनती के चार खेल होते थे और खेलने वाले 40। सभी बच्चें इकट्ठा होकर के आपस में खेलते थे। लेकिन अब हर बच्चे के पास मौजूद मोबाइल में कई-सौ गेम है। पहले किसी भी खेल को खेलने के लिए कम से कम 2 बच्चों की आवश्यकता होती थी जैसे कि बचपन में मैं अपने बड़े भाई से कहता था कि चल बैट-बॉल खेले और वह मुझसे। लेकिन आज किसी भी बच्चे को खेलने के लिए पार्टनर की जरूरत ही महसूस नहीं होती।

अगर आप मेरी बातों से सहमत हैं तो इस लेख को ज्यादा से ज्यादा पेरेंट्स तक पहुंचाएं। आज जिस तरीके से कोरोना महामारी ने सबको घर में बैठा रखा है लेकिन कुछ कोरोना वारियर्स ऐसे भी हैं जो इससे बिना डरे सावधानीपूर्वक घर से बाहर निकल कर लोगों की मदद कर रहे हैं, देश की सेवा कर रहे हैं। तो कुछ लोग ऐसे भी है जो कि घर बैठे-बैठे ही सोशल मीडिया के माध्यम से कोरोनावायरस से संक्रमित लोगों की जरूरतों को सोशल मीडिया पर शेयर करके उनकी सहायता कर रहें हैं। आखिर समाज के बीच में सही मैसेज देना भी एक प्रकार से देश भक्ति ही है और आज जो कोरोना के समय में ज्यादातर लोग अपने अपने घरों में कैद हैं, तो अगर वे भी घर बैठे-बैठे समाज में सही मैसेज पहुंचा पाए और देश सेवा कर पाए तो इससे अच्छा और क्या हो सकता है।

आपने अपना बहुमूल्य समय निकालकर इस लेख को पढ़ा उसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आपको यह लेख कैसा लगा कृपया आप हमें कमेंट बॉक्स में लिख करके जरूर बताएं और और अगर आपके पास भी ऐसा कोई सुझाव हो तो हमें जरूर लिखें ।

5 thoughts on “परवरिश”

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