कामयाबी ना हाथों की लकीरों से मिलती है ना माथे के पसीने से मिलती है। कामयाबी तो सिर्फ दोनो के संगम से मिलती है।
कुछ लोग मानते हैं कि कामयाबी सिर्फ भाग्यशाली लोगों के नसीब में ही होती है और वे अपनी किस्मत के भरोसे पूरा जीवन बिना कुछ किए ऐसे ही गुजार देते हैं जबकि दूसरी तरफ लोगों का यह भी मानना है कि कामयाबी किस्मत से नहीं बल्कि खून पसीने से की गई मेहनत से मिलती है। लेकिन मेरा मानना यह है कि कामयाबी किस्मत और सही दिशा में की गई मेहनत के सही सन्तुलन से ही मिलती है। क्योंकि भागवत गीता में भी भगवान श्री कृष्ण कर्म को प्रधान बताया है। उन्होंने कहा है कि कर्म करो फल की इच्छा मत करो। क्योंकि किए गए कर्म का फल मनुष्य के हाथ में नहीं है। लेकिन फिर भी भगवान श्री कृष्ण ने कर्म की थ्योरी पर ही अधिक बल दिया है। भगवान श्री कृष्ण ने कौरवों और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध से पहले अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कहा था कि हे अर्जुन युद्ध का परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं है अगर तुम युद्ध में विजय हुए तो पृथ्वी का सुख भोगोगे और यदि युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए तो स्वर्ग का। लेकिन फिर भी कर्म तो करना ही पड़ेगा।