Don’t let the enemy of ego grow inside you

एक अहंकारी और शरारती तत्व ने पूछा कि आपको क्या लगता है मैं एक कामयाब इन्सान नहीं हूँ?

जब तक तुम बड़ों का सम्मान और छोटो से प्यार नहीं करोगे और तुम्हारे साथ उनकी दुआएं नहीं रहेंगी तब तक तुम कामयाब नहीं हो सकते। दुआओं का भी हमारी सफलता में विशेष योगदान रहता है। मैं पूछता हूँ कि आखिर तुम ऐसी कामयाबी का करोगे क्या जिसका जश्न मनाने के लिए तुम्हारे साथ कोई ना हो।


समाज में बहुत सारे ऐसे लोग होते हैं जिनका एटीट्यूड नेगेटिव होता है और वे नेगेटिव एटीट्यूड के साथ ही आगे बढ़ना चाहते है लेकिन नेगेटिव एटीट्यूड के साथ कोई भी सफल नहीं होता, आगे नहीं बढ़ सकता और यदि ऐसा होता भी है तो वह अपने लिए और समाज के लिए दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। मनुष्य जब छोटा बच्चा होता है तब वह मात-पिता, भाई-बहन और अपने परिवार के सदस्यो के बिना रह नहीं पाता है, अपनी जरूरत की हर चीज के लिए उन पर निर्भर रहता है लेकिन जैसे-जैसे वह थोड़ा बड़ा होने लगता है,उसके आकार-विकार,आचार-विचार और आहार-विहार में धीरे-धीरे परिवर्तन होने लगता है। उसके अंदर अहंकार के तत्व जन्म लेने लगते है। मनुष्य एक अति स्वार्थी प्राणी है और वह जब तक ही दूसरों से मतलब रखता है जब तक उसका स्वंय का स्वार्थ पूरा होता रहता है। फिर चाहे वो माता-पिता हो या अन्य परिवार का कोई सदस्य हो। अहंकार मनुष्य का इतना बड़ा शत्रु होता है कि वह उसे अपनो से धीरे-धीरे दूर ले जाता है। ठीक ऐसे ही जैसे कि समुद्र की लहरे कश्ती को। अहंकार रूपी शत्रु मनुष्य के अंदर धीरे धीरे विकसित होता है और उसके मन मस्तिष्क पर कब्जा करके बैठ जाता है और फिर वह अपने आप की भी नहीं सुनता। सलमान खान की वांटेड फिल्म का फेमस डायलॉग तो आपको याद ही होगा “एक बार जो मैंने कमिटमेंट कर दी तो फिर मैं खुद की भी नहीं सुनता।” ये जो खुद की भी नहीं सुनने वाली बात है ना दोस्तों यही हमारा असली शत्रु है। इसी को अहंकार कहते हैं। फिल्मों में तो ऐसी बातें सिर्फ मनोरंजन और दौलत-शौहरत कमाने के लिए कही जाती हैं। लेकिन आज की नौजवान पीढ़ी इन चीजों को अपने मन मस्तिष्क में बसा लेती हैं और यह डायलॉग उन पर इस तरीके से हावी हो जाते हैं मानो उनके DNA में उतर जाती है।
अहंकार रूपी शत्रु मनुष्य के शरीर के द्वारा अपनी सारी बातें मनवाता है और एक तरीके से मनुष्य के ऊपर राज करता है लेकिन मनुष्य को इस बात का जरा भी पता नहीं चलता।



मनुष्य आखिर अहंकार क्यो करता ?

इस पूरे ब्रह्मांड में सैकड़ों पृथ्वी है और प्रत्येक पृथ्वी का अपना एक अलग सूरज है। सूरज पृथ्वी से आकार में कई गुना बड़ा होता है। इसके अंदर इतनी गर्मी भरी हुई है जिसका सहज अंदाजा नहीं लगाया जा सकता क्योंकि पृथ्वी से कई हजार किलोमीटर दूर होने के बावजूद भी सूरज की गर्मी को पृथ्वी पर सहन करना बड़ा मुश्किल होता है। केवल किसान और जवान ही गर्मी में बिना AC के तपती धूप में काम कर पाते हैं। लेकिन जिन लोगों को AC की आदत पड़ जाती है वह तो धूप में खड़े भी नहीं हो पाते। यदि किसी बच्चे या बडे के अन्दर अपनी शारीरिक ताकत या दौलत-शौहरत के कारण जरा भी अहंकार हो जाए तो वह अपने आप को सूरज के सामने आँख से आँख मिलाकर देख ले। यहां पर मैं आपको एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं।
जटायु और संपाती रामायण काल में दोनो भाई थे। इनका जन्म पक्षी योनी में हुआ था लेकिन दोनो में अथाह शक्ति थी। जटायु, संपाती का छोटा भाई था। एक बार दोनों अपनी शक्ति के अहंकार में चूर होकर के सूरज पर जाने का फैसला करते हैं और दोनों आकाश मार्ग से सूरज की तरफ बढ़ने लगते हैं जैसे जैसे दोनो भाई सूरज की तरफ बढ़ते हैं वैसे-वैसे सूरज की गर्मी का ताप बढ़ता ही जाता है और जटायु उसे सहन नहीं कर पाता। उसके बाद वह अपने भाई संपाती से कहता है कि चलो भाई अब वापस चलते हैं लेकिन संपाति को अपनी ताकत का इतना अहंकार हो चुका होता है कि सूरज को भी अपने सामने कुछ नहीं समझता है और जटायु से कहता है कि तू पृथ्वी पर वापस लौट जा मैं तो अब सूरज से मिलकर ही वापस आऊंगा। लेकिन प्रकृति से कोई भी जीव न तो आज तक जीत पाया है और ना ही भविष्य में जीत सकता है।
परिणाम स्वरूप संपाती सूरज की गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर पाता और उसके पंख जल जाते हैं जिसके कारण वह पृथ्वी पर आकर गिरता है। अब वह उड़ने में समर्थ नहीं रहा। उसकी सारी शक्ति क्षीण हो चुकी थी। यह कहानी स्वयं संपाती ने भगवान श्री राम की वानर सेना को उस समय सुनाई थी जब वानर सेना प्रभु श्री राम के आदेश पर वनों में माता सीता की खोज कर रही थी। और माता सीता की कोई खोज खबर नहीं मिल पाने के कारण बुरी तरह से हताश हो चुकी थी। लेकिन प्रभु श्री राम की माया देखिए दोनों को ही अपनी छाया में समेट लिया। दोनों भाइयों को अपनी सेवा करने का अमूल्य अवसर प्रदान किया।
जहां छोटे भाई जटायु को माता सीता की रावण से रक्षा करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, तो वही बड़े भाई संपाती ने वानर सेना को यह बताया कि रावण, माता सीता को अपने पुष्पक विमान से इसी मार्ग से लेकर गया था। इससे परम भक्त हनुमान जी को माता सीता तक पहुंचने में मदद मिली थी।
पूरे ब्रह्मांड का एक छोटा सा हिस्सा पृथ्वी है। जिस पर लगभग 70 प्रतिशत जल है और 30 प्रतिशत भू-भाग है। उसमें से भी बहुत कम हिस्सा समतल है जिस पर व्यक्ति अपना जीवन-यापन कर पाता है।
फिर भी मनुष्य थोड़ी सी संपत्ति और दौलत-शौहरत इकट्ठा करके अपने आप को अहंकार से भर लेता है और समझने लगता है कि अब वही सर्वे सर्वा है। उसके बिना कुछ भी नहीं है। मानो वह खुद से यह कह रहा होता है कि “अपुन ही भगवान है।” लेकिन सफलता-असफलता यहां तक कि मनुष्य का जीवन भी एक स्वप्न मात्र है जो कि पलक झपकते ही कब खत्म हो जाता है पता भी नहीं चलता। इस पृथ्वी पर ना जाने कितने लोग आए और चले गए। सिकंदर और सम्राट अशोक पूरी पृथ्वी को जीत करके खाली हाथी वापस चले गए। सिकंदर ने तो यह भी कहा था कि जब मैं मर जाऊं तो मेरे दोनो हाथ कफन से बाहर लटका देना ताकि लोगों को भी यह संदेश मिल सके कि प्रत्येक जीव को खाली हाथ ही आना है और खाली हाथ ही जाना पड़ता है। और अगर आजकल की पीढ़ी को ताजा उदाहरण देखने हैं तो संजय गांधी को देख लीजिए कहते हैं कि 28 साल का नौजवान जिसके पेशाब में भी चिराग जलता था। पूरा हिंदुस्तान मानो उनकी मुट्ठी में था। वह जिसे चाहे जेल में डाल दें और जिसे चाहे रंक से राजा बना दे। बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना को कौन भूल सकता है। कहते हैं कि जब तक वह सुबह सोकर उठते थे तब तक उनके दरवाजे पर कई सौ प्रेम पत्र आ चुके होते थे। लड़कियाँ उनकी इतनी दीवानी थी कि जब वे अपनी गाडी में बैठकर कही निकलते थे तो उनकी पूरी गाडी पर सिर्फ लिपस्टिक के निशान दिखाई पड़ते थे। लेकिन यह स्टारडम केवल 5 से 6 साल तक ही चला। मानो इतने छोटे से समय के लिए वे पृथ्वी लोक पर रहकर भी स्वर्ग लोक का आनंद ले पाए। सदाबहार अभिनेता देवानंद का भी कुछ ऐसा ही असर था। कहते हैं कि उस जमाने में ब्लैक और व्हाइट कपड़े पहनने पर उन पर प्रतिबंध था।
विश्व के सबसे हैंडसम व्यक्ति रहे और मेरे पसंदीदा हीरो में से एक धर्मेंद्र पाजीराजेश खन्ना के स्टारडम को जबरदस्त टक्कर देने वाले और बाद में एंग्री यंग मैन के रूप में मशहूर हुए सदी के महानायक अमिताभ बच्चन। आज जब मैं उनके शरीर पर उम्र का जो असर मैं देखता हूँ तो व्यक्तिगत रूप से मुझे बड़ा दुख होता है। ऐसा मन करता है कि मेरी उम्र भी उन्ही को लग जाए। लेकिन हम सब  प्रकृति के घेरे में हैं और यहां पर कुछ भी सनातन नहीं है। समय के साथ-साथ प्रत्येक जीव और वस्तु में बदलाव होता रहता है और यह जरूरी भी है। क्योंकि यह मृत्युलोक है, इसीलिए यहां पर कदम-कदम पर परिवर्तन होते रहते हैं, फिर चाहे वह अध्यात्मिक हो, भौतिक हो, शारीरिक हो या फिर मानसिक हो। चाहे कोई भी हो, वह प्रकृति के इस क्रम का अतिक्रमण नहीं कर सकता। हालांकि यह परिवर्तन अंत में व्यक्ति के हित में ही होता है। परिवर्तन एक प्रकार का मंथन होता है और मंथन से ही मनुष्य नवीनता प्राप्त करता है। भूकंप सृष्टि के निरंतर हो रहे मंथन से ही आते हैं। और इसके कारण ही हीरा, पन्ना, नीलम जैसे अमूल्य रत्न तथा सोना, चांदी, लोहा गैस, तेल जैसे मूल्यवान तत्व हमें प्राप्त होते हैं। विभिन्न प्रकार के मौसम में जो परिवर्तन हम देखते रहते हैं, उससे ही हमें तरह-तरह के फल, अनाज, साग-सब्जी आदि प्राप्त होते हैं। एक प्रकार से परिवर्तन अत्यधिक लाभप्रद होते हैं। यह ईश्वर का आशीर्वाद है, परिवर्तन सत्य है और आवश्यक है।

कहानी का निष्कर्ष

अहंकार हमारा सबसे बड़ा शत्रु है और हमें इसे अपने अंदर जरा भी शरण नहीं देनी चाहिए।
मुझे पूरी उम्मीद है कि यह कहानी आपको अच्छी लगी होगी। आपको इस कहानी से क्या सीख मिली? आप हमारे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर लिखें और अगर आपके पास भी कोई ऐसी मोटिवेशनल स्टोरी है, तो आप हमें ईमेल कर सकते हैं। हम अपने आर्टिकल के माध्यम से आप की कहानी को अपने दर्शकों तक पहुंचाने का काम करेंगे।
आपने अपना कीमती समय निकालकर इस आर्टिकल को पढ़ा उसके लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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