रतन टाटा हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया की उन चुनिंदा शख्सियतों में से एक हैं जो कि हमेशा ही अपनी दरियादिली के लिए जाने जाते हैं।
जिंदगी में कुछ कर गुजरने की अगर चाहत हो तो लक्ष्य चाहे कितना भी मुश्किल क्यों ना हो उसे कठिन परिश्रम और अनुशासन से पाया जा सकता है यह बात हमें टाटा मोटर्स के संस्थापक श्री रतन टाटा जी के जीवन से सीखने को मिलती है।
Ratan Tata |
आज हम आपको बताएंगे उन्हीं की जिंदगी से जुड़ा हुआ एक महत्वपूर्ण किस्सा जो आपको जीवन भर मोटिवेट करेगा और आगे बढ़ने के लिए हमेशा प्रेरित करता रहेगा। टाटा समूह देश के सबसे बड़े औद्योगिक घरानो मेंं से एक है जिसके एक सामान्य से कर्मचारी और बाद में सबसे अधिक समय तक चेयरमैन रहे रतन टाटा रिटायरमेंट के बाद भी समाज हित में, देश हित में कुछ ना कुछ योगदान देते ही रहते हैं जैसे कि वे कोरोनावायरस जैसी महामारी के समय भी देश के साथ खड़े रहे और उन्होंने लगभग 25 सौ करोड रुपए की धनराशि प्रधानमंत्री राहत कोष में जमा करवाई। बात 1998 की है जब रतन टाटा ने ऑटोमोबाइल्स के फिल्ड में हाथ आजमाया और देश में टाटा इंडिका के रूप में टाटा कंपनी की पहली गाड़ी लॉन्च की । लेकिन टाटा इंडिका हिंदुस्तान के लोगों को ज्यादा पसंद नहीं आई और मार्केट में अपनी जगह बनाने में नाकामयाब रही । उसके बाद उनके करीबी लोगों ने उन्हें कार डिवीजन बेचने की सलाह दी जिसे उन्होंने मान भी लिया और कई बड़ी-बड़ी कंपनियों से अपनी कार डिवीजन को खरीदने के लिए संपर्क किया। जिसके चलते दुनिया की बेहतरीन ऑटोमोबाइल्स कंपनियों में से एक अमेरिकी ऑटोमोबाइल्स कंपनी फोर्ड ने टाटा इंडिका डिवीजन को खरीदने में अपनी दिलचस्पी दिखाई और रतन टाटा से इस संबंध में एक मीटिंग फिक्स की । फोर्ड कंपनी केे अधिकारी मीटिंग के लिए टाटा कंपनी के हेड क्वार्टर मुंबई हाउस पहुंचे और लंबी बातचीत के बाद फोर्ड कंपनी के अधिकारी टाटा की कार डिवीजन को खरीदने के लिए तैयार हो गए लेकिन मीटिंग के दौरान फोर्ड कंपनी के चेयरमैन ने रतन टाटा से ताना मारतेेे हुए कहा की जब आपको कार बनाने के बारे में कुछ जानकारी ही नहीं थी तो आपने यह बिजनेस शुरू ही क्यों किया। हम आपकी कंपनी को खरीद कर आप पर एक तरीके से एहसान हीं कर रहे हैं। यह बात रतन टाटा के दिल में तीर की तरह चुभ गई, जिससे न सिर्फ उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंची बल्कि उन्हें अपनी सफलता की चाबी भी मिल गई। उन्होंने फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने फैसला किया कि अब वह अपनी कार डिवीजन को नहींं बेचेंगे। जिसके बाद उन्होंने ऑटोमोबाइल सेक्टर में गहन रिसर्च और मेहनत शुरू कर दी, बाकी सब इतिहास है ।
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आज टाटा मोटर्स का हिंदुस्तान के लोगों के दिलों में विशेष स्थान है। कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है उस घटना के लगभग 9 साल बाद साल 2008 में फोर्ड कंपनी लगभग दिवालिया हो चुकी थी और उसे अपने जैगुआर, लैंड रोवर डिवीजन से काफी नुकसान हो रहा था जिसके चलते फोर्ड कंपनी के चेयरमैन विलियम फोर्ड ने अपने बेहतरीन मॉडल्स में शुमार जैगुआर लैंड रोवर डिवीजन ( JLR ) बेचने का फैसला किया।
” https://en.wikipedia.org/wiki/William_Clay_Ford%2C_Jr. ”
जिसमें टाटा मोटर्स ने दिलचस्पी दिखाई और टाटा मोटर्स के हेडक्वार्टर्स Bombay House में फोर्ड कंपनी के अधिकारियों के साथ एक मीटिंग बुलाई गई जिसमें जैगुआर लैंड रोवर डिवीजन ( JLR ) को खरीदने के लिए लगभग 93000/ 93 हजार करोड़ में डील तय हुई।
Discovery |
Jaguar |
उस समय विलियम फोर्ड ने टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा से कहा था कि आप हमसे यह डील करके हम पर एक तरीके से एहसान ही कर रहे हो। अमेरिकी फोर्ड कंपनी आज भी दुनिया की 5 सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल्स कंपनियों में से एक है और उसके यह दोनों मॉडल जैगुआर और लैंड रोवर की गिनती दुनिया की बेहतरीन लग्जरी गाड़ियों में होती है जिनमें चलना हर किसी के बस की बात नहीं होती लेकिन आज इन दोनों मॉडल्स पर टाटा मोटर्स अपना मालिकाना हक रखती है। यह बात टाटा मोटर्स के लिए ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान के लिए फक्र की बात है।
रतन टाटा का नाम यूं तो दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में आता है लेकिन घमंड उन्हें छू तक नहीं सका। वे आज भी अपना जीवन बेहद सादगी के साथ जीते हैं।
” I don’t believe in talking right decisions,
I take decisions & then make them right “
Shri Ratan Tata